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Sunday, July 9, 2017

लघुकथा - "आवाज"




शैलेन्द्र राठौर 
शैलेन्द्र राठौर की लिखी लघुकथा "आवाज"...पढ़ें...पसंद आये तो कमेंट व शेयर जरूर करें..









लघुकथा - आवाज

रोहित को आज इंजीनियरिंग कॉलेज में बेस्ट स्टूडेंट का अवार्ड मिल रहा था । रोहित के लिए ये अवार्ड  बहुत खास था क्यों कि रोहित ने ये अवार्ड सामान्य बच्चों के कॉलेज में जीता था जबकि
रोहित मूक बधिर था। वो न बोल पाता था और ना ही सुन पाता था । मंच पर उसे बुलाया गया और उसे ट्रॉफी दी गई | फिर इशारो में उससे पूछा कि उसे कैसा लग रहा है | उसने अपनी माँ की तरफ इशारा किया और इशारे से ही बताया कि ये उसकी माँ की वजह से संभव हुआ। फिर प्रिंसिपल ने रोहित की माँ को अपने पास मंच पर  बुलाया  और दो शब्द बोलने को कहा |

रोहित की माँ ने बोलना शुरू किया...रोहित जब पैदा हुआ तब हमारे घर में बहुत खुशिया मनाई गई लेकिन जब रोहित थोड़ा बड़ा हुआ तब हमें पता चला कि वो बोल सुन नही सकता | इसके पापा और
में सदमे में आ गए। चूकि हम गाँव में थे इसलिए ऐसा कोई स्कूल नही था जहाँ रोहित को पढ़ा सकें । शहर में रहना मुश्किल था क्योंकि रोहित के पिता की पुश्तेनी खेती बाड़ी थी। सभी ने कहा कि रोहित को मूक बधिर हॉस्टल में डाल दो। लेकिन मैं नही मानी क्योंकि मेरा बेटा बोल सुन नही सकता था तो वो मेरे बिना कैसे रह सकता था। मैंने अकेले शहर में रहने की ठानी । 5 साल के रोहित को लेकर में इंदौर आ गई। यहां एक मूक बधिर स्कूल में इसका एडमिशन करवाया और खुद एक प्राइवेट नौकरी करने लगी । अपने बच्चे के साथ साये की तरह रही । लेकिन कॉलेज की जब बारी आई तो उसे सामान्य बच्चो के कॉलेज में दाखिला दिलाया । जानती थी कि उसको यहां सामान्य बच्चो के साथ दिक्कत आएगी तो इसी कॉलेज में मैंने भी उसके साथ दाखिला लिया ताकि हरपल उसके साथ रह सकूँ और उसको जो समझ न आये वो में इशारो से बता सकूँ । उसके लिए मैंने अपने सारे सपने एकतरफ रख दिए। अपना पूरा वैवाहिक जीवन त्याग दिया | सिर्फ इसलिये कि मैं इसकी आवाज बन सकूँ और आज रोहित ने बेस्ट स्टूडेंट का ये अवार्ड जीतकर मेरे त्याग और बलिदान को सफल कर दिया। कहते कहते रोहित की माँ की आँखों से ख़ुशी के आंसू छलक पड़े।
      


लेखक- शैलेंद्र राठौर
पता- पुराने पुलिस थाने के पीछे, नामली
जिला रतलाम, मध्य प्रदेश
पिन 457222
mob 9406874333

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