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Monday, July 3, 2017

कविता - केसरिया मन



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अंकुर पटेल 
अंकुर पटेल की लिखी कविता "केसरिया मन"...पढ़ें...पसंद आये तो कमेंट व शेयर जरूर करें...












कविता - "केसरिया मन"

"केसरिया मन"

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एक झोंका जो मन को सहला जाए
एक मुस्कराहट जो मस्तक की सिकुड़न को मिटा जाए
एक तल्लीनता जो जीवन को आनंद दे।
सूर्य की रोशनी होते ही फूलों की तरह खिल उठे,
काश! दिन हो एक जिस से मुझे जाना है।
दिन-भर इबारत हो खुशनुमा बसंत की
बन्द घर से खुले खेत धानी की
पावस की उमस से हटकर घिरते बादलों की
श्यामल नील सलिल में उड़ती तितली की
जिससे मन हुंकार मारे बार-बार डमरू की तरह,
काश! दिन हो एक जिस से मुझे जाना है।

©अंकुर पटेल


- "अंकुर पटेल"
Student, B.Sc. (H), Physics,
Deen Dayal Upadhyaya Colege, Delhi

  

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