Menu bar

New Releasing soon...my new novel कंपू 007..a topper's tale कंपू 007...a topper's tale
New इस ब्लॉग के पोस्ट को मीडिया में देखने के लिये MORE menu के Milestone पर क्लिक करें..

Saturday, January 7, 2017

लेख - मीडियानामा

मीडियानामा


NITENDRA,speaks,articles,stories,hindi kahaniyanलिये थोड़ा सा पीछे चलें | ज्यादा पीछे नहीं...हम्म...बस 8 नवम्बर से पहले...अब जरा गौर फरमाएं उस समय देश के तमाम न्यूज़ चैनलों पर कब्ज़ा जमाये बैठी ख़बरों पर | पूरा देश डेंगू चिकुनगुनिया की चपेट में था | ऐसा लग रहा था कि देश भर के अस्पताल इसी के मरीजों से अटे पड़े हैं | और कोई बीमारी बची ही नहीं थी | फिर शुरू हुआ राजधानी दिल्ली में धुंध यानि स्मॉग का कहर | न्यूज़ चैनलों पर यह धुंध ऐसी छाई कि बाकी ख़बरें दिखाई ही नहीं पड़ीं | ऐसा लगने लगा कि अब दिल्ली रहने लायक भी नहीं बची | तमाम दिल्ली वालों ने तो अपने घर बेचने के प्लान भी बना लिये होंगे ! इधर चैनलों पर एयर प्यूरीफायर के विज्ञापन भी खूब दिखाई देने लगे |

बचे समय में मीडिया अमेरिकी चुनाव में भी कूदा फांदी करता रहा | ट्रम्प या हिलेरी के बीच जंग के महारथी रहे हमारे चैनल्स | हमारी सीमा पर दुश्मन का हमला हुआ तो पूरे मीडिया का खून खौल उठा | जवाबी कार्यवाई का ऐसा दबाव बनाया गया कि सरकार ने स्ट्राइक ही कर दी | कभी कभी तो कोई खास मुद्दा ना मिलने पर मीडिया को किसी के विवादित बयान से काम चलाना पड़ता था | खैर...इसमें कोई शक नहीं कि चौबीस घंटे चलने वाले खबरिया चैनलों को अपनी डोज पाने के लिये खासी मशक्कत करनी पड़ती थी |

NITENDRA,speaks,articles,stories,hindi kahaniyan8 नवम्बर को रात ठीक 8 बजे कुछ ऐसा हुआ जिसने इन न्यूज़ चैनलों को महीनों के लिये फुल डाइट दे दी | अब उन्हें कोई मशक्कत करने की जरुरत नहीं रही | नोटबंदी ने उनका गला ऊपर तक ठस कर दिया | इसके बाद हर न्यूज़ चैनल इसे अपने रंग में रंगकर दिखाने में जी जान से जुट गया | दिन बदलने के साथ चैनल की खबरों का रंग भी बदलता रहा | कुछ चैनलों ने शुरु में तो जनता की तकलीफों को खूब बढ़ चढ़कर दिखाया लेकिन बड़े अजीब तरीके से अचानक सरकार के पक्ष में ऐसा रुख बदला कि दर्शक भी भ्रमित हो गये | इसमें एक धीर गंभीर टीवी एंकर और उनका चैनल भी शामिल है | भाजपा का भोंपू माने जाने वाले जी टीवी ने शायद ही कभी बैंकों या एटीएम के बाहर लगी लाइनों, आम जनता की समस्याओं को दिखाया हो | यह चैनल नोटबंदी से इतर ऐसी ख़बरें दिखाता रहा जैसे देश में नोटबंदी जैसा कुछ हुआ ही न हो |

चैनलों ने अपने सारे रिपोर्टर बैंकों में भेज दिये | कुछ बाहर लाइनों में लगी भीड़ से उसके कष्ट जानने समझने में जुट गये तो तमाम अन्दर ही घुस गये | कुछ मीडिया कर्मियों की हरकतें तो बेहद हास्यापद रहीं | मसलन एक चैनल यह दिखाने में लगा था कि किस तरह बैंकों में ग्राहकों को सिक्के बांट कर परेशान किया जा रहा है | अब इनको शायद यह समझाना पड़ेगा कि अगर सरकार सिक्के तैयार करवाती है तो जनता के लिये ही ना | बाँटने की जिम्मेदारी भी बैंकों की ही होती है | तो सिक्के बांटकर बैंकों ने कौन सा अपराध कर दिया ? वहीँ कुछ चैनल यह भी दिखाते रहे कि बैंकों ने किस तरह अपने चैनल बंद कर रखे और लोगों को अन्दर नहीं घुसने दिया गया | शायद इन्हें मालूम नहीं कि शाखा के भीतर कुछ ही लोग आ सकते हैं | एक साथ सौ या दो सौ लोगों को अन्दर करना संभव नहीं | लेकिन न्यूज़ चैनलों को इससे खास मतलब नहीं था | उन्हें तो हर वो चीज दिखाने में मजा आता है जो नकारात्मक हो | ऐसे ही बड़े ही प्रतिष्ठित चैनल के एक प्रतिष्ठित एंकर ने एक बहस के अपने प्रोग्राम में तो यहाँ तक कह डाला कि दंगल फिल्म ने तो तीन दिनों में ही 100 करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया तो देश में कैश की कमी कहाँ है | शायद उन्हें लगता होगा की देश का गरीब, मजदूर और किसान सुबह सुबह जगते ही मल्टीप्लेक्स में घुस जाता है | इसी प्रोग्राम के पैनल में बैठी जानी मानी फिल्म कलाकार ने तो यहाँ तक कह डाला कि नोटबंदी से तो लोगों को फायदा पहुंचा है | अब सब्जी लेने जाओ तो दुकानदार एक दो किलो टमाटर मुफ्त में डाल देता है | ऐसे लोग तो किसानों द्वारा सड़कों पर फेंक दिये गये टमाटर जैसी घटनाओं को देश की अर्थव्यवस्था के लिये सुनहरे दिन भी मान सकते हैं | हाल ही में अपना नाम बदलने वाले एक चैनल के बड़े ही तेज तर्रार एंकर के बहस के प्रोगाम में तो भाजपा प्रवक्ता को कुछ बोलने की जरुरत ही नहीं पड़ी क्योंकि यह काम एंकर महोदय स्वयं ही करते रहे |  

कुछ बैंक वाले गलत काम में लिप्त क्या पाये गये मीडिया ने ऐसा प्रचारित करना शुरू कर दिया गोया सारे बैंक वाले ही भ्रष्ट हों | आश्चर्य है कि इन पचास दिनों में चैनलों को कोई भी अच्छा काम नहीं दिखा जो बैंक वालों ने किया हो | किसी ने भी न तो बैंक वालों के दर्द को दिखाना मुनासिब समझा न काम के दबाव को | सब अपना ही राग अलापते रहे | बैंक के बाहर खड़ी भीड़ में से अगर गलती से किसी ने बैंक वालों के प्रति सहानुभूति दिखाते हुए उनकी तारीफ़ कर दी तो उसे भी कट कर दिया | हां एक चैनल जरूर इस भीड़ में अलग रहा - एनडीटीवी | इस चैनल ने अपने एक खास कार्यक्रम के आधे हिस्से में इस पूरी नोटबंदी में बैंककर्मियों की समस्याओं और उनकी मेहनत का जिक्र किया | काश बाकी चैनलों को भी ये दिखाई देता | लेकिन सबकी आँखों पर तो एक ऐसा पर्दा पड़ा हुआ है जो उन्हें उतना ही देखने देता है जितना वो दिखाना चाहता है |

नोटबंदी के असल क्रियान्वयन की पूरी जिम्मेदारी बैंकों के ऊपर डाली गयी | दिन मांगे गये पचास | ज्यादातर जगहों पर चालीस दिन के अन्दर ही हालात सामान्य होते दिखे | शुरुआती दिनों में अव्यवस्थाओं के लिये बैंकों व बैंक कर्मचारियों को पानी पी पी कर कोस रहे मीडिया ने क्या इसके लिये बैंकों की मेहनत को सराहा ? क्या इतनी बड़ी योजना बिना बैंक कर्मचारियों की मेहनत के सफल हो गयी ? गौर फरमायें कि जैसे जैसे हालात सामान्य होते गये वैसे वैसे मीडिया का ध्यान इस मुद्दे से हटता गया और नोटबंदी से जुडी ख़बरों की जगह अन्य ख़बरों ने ले ली | 30 तारीख आते आते मीडिया का ध्यान नोटबंदी से लगभग पूरी तरह हट चुका था क्योंकि उन्हें अपनी नाक घुसाने के लिये दूसरा मुद्दा मिल गया था | उत्तर प्रदेश में बाप बेटे के बीच पिछले पचास दिनों से थमी जंग ने मीडिया को फिर डोज दी | शायद दोनों पचास दिन ख़त्म होने का ही इंतजार कर रहे थे |

गौर करें कि इसी दौरान एक और राज्य(छोटा) के मुख्यमंत्री को उनकी अपनी पार्टी से निष्कासित कर दिया गया | जिसके बाद मचे राजनीतिक बवन्डर ने उनकी कुर्सी हिला दी | लेकिन यूपी की जंग इस पर भारी पड़ी | पता नहीं क्यों उस खबर को बहुत फुटेज नहीं मिल पाई | आजकल सभी न्यूज़ चैनल यूपी की जंग की ख़बरों से ही गुंजायमान हैं | नोटबंदी, काला धन और कैशलेस जैसे मुद्दे अब मीडिया की लिस्ट से तेजी से गायब होते जा रहे हैं | जाहिर है कि चुनाव के चलते आने वाले दिनों में भी चुनावी ख़बरें ही छाई रहेंगी |

आखिर मीडिया एक ही खबर के पीछे क्यों पड़ जाता है ? और उन्हें एक खास नजरिये से ही क्यों पेश किया जाता है ? यह सब उनकी मंशा और विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगाता है | ऐसा करके वह स्वयं को ही शक के दायरे में खड़ा कर लेते हैं | केवल एक ही खबर इतनी महत्वपूर्ण कैसे हो सकती है कि बाकी किसी खबर के लिये जगह ही न बचे | मीडिया को खबर के हर पहलू को दिखाना चाहिये न की अपना पहलू दर्शकों पर थोप देना चाहिये | मीडिया का पूर्वाग्रह से ग्रस्त होना समाज के लिये खतरनाक है क्योंकि यहाँ दिखाई गयी ख़बरों को ही दर्शक सच मान बैठता है | समाज व देश हित के लिये यह जरूरी है कि मीडिया अपनी जिम्मेदारी को समझे और उसका सही तरीके से निर्वाह करे | इसके लिये जरूरी है कि मीडिया  ख़बरों के हर पक्ष को पूरी निष्पक्षता से दिखाये न की एक ही पक्ष को घिसता रहे तभी लोगों में उसकी विश्वसनीयता बनी रह सकती है |



Article By : Nitendra Verma     
Date: January 07, 2017 Saturday

(लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं | इसका उद्देश्य किसी भी तरह से मीडिया, मीडिया कर्मियों या अन्य किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाना नहीं है |)


      

No comments:

Post a Comment