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Sunday, November 27, 2016

कविता - "संध्या काल"

             
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Ankur Patel
होनहार छात्र होने के साथ ही लेखन पर भी हाथ आजमा रहे  अंकुर पटेल की लिखी एक कविता..."संध्या-काल"...








"संध्या-काल"

किये संकुचित अखण्ड रश्मियाँ
रवि चले पश्चिम की ओर ।
           
रवि ने उठाया डेरा जब
            
तुमुल तम की आ गयी डोलियाँ ।
नभ-शासक बना शशि तब
सज गयीं ताराओं की लड़ियां ।
              
झींगुर ने झनकार मचायी
               
पर दयनीय हुयी कलियाँ |
बिछड़ गये चकवी-चकवा
आयी उनके शोक की घड़ियाँ ।
                
अटल प्रकृति भी हो गयी स्तब्ध
                  
सूनी हो गयी सारी गलियां ।
कुछ तो हुए अति प्रमुदित
किसी की आयी शोक की घड़ियाँ ।
                  
रवि चले पश्चिम की ओर
                  
किये संकुचित अखण्ड रश्मियाँ ।
         
  

-- "अंकुर पटेल"
Student, B.Sc. (H), Physics,
Deen Dayal Upadhyaya College, Delhi




(यह कविता e-mail द्वारा प्राप्त | यदि आपके पास भी है कोई कहानी, लघुकथा, कविता, ग़ज़ल या लेखन विधा से जुड़ा कुछ और तो भेज दें e-mail id: nitendraverma@gmail.com पर  )
                      

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