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Sunday, July 31, 2016

लघुकथा - मन्नत

मन्नत

राजीव को पिछले कई दिनों से पंडित जी मंदिर आते हुये देख रहे थे। उन्हें लग रहा था के राजीव कई दिनों से परेशान है। एक दिन राजीव जब सुबह सुबह मंदिर आया था तो पंडित जी ने उत्सुकता वश पूछ ही लिया- बेटा कई दिनो से तुम्हे देख रहा हूँ तुम मंदिर तो आते हो पर तुम्हारे चेहरे पर शांति नही परेशानी दिखाई देती है। आखिर क्या बात है?

राजीव वही सीढ़ियों पर ही बैठ गया और लंबी सांस लेते हुए बोला - पंडित जी आपको तो पता ही है माँ की तबियत पिछले कई दिनों से खराब है....

राजीव की बात बीच मे ही काटते हुए पंडित जी बोले— हाँ बेटा बताओ तुम्हारी माँ की तबीयत अब कैसी है? 

कुछ खास नही है पंडित जी। उन्ही को लेकर बहुत परेशान हूँ । पिछले दो महीनो मे सब डॉक्टर को दिखाया पर कुछ फरक नही है। उनकी वजह से मे अपनी नोकरी पर भी ध्यान नही दे पा रहा हूँ । मेरी बीवी भी अपनी जॉब को टाइम नही दे पा रही है । अब उनका कुछ हो जाये तो ठीक है । उनका दर्द मुझसे देखा नही जाता, भगवान उनकी सुन ले तो ठीक है। यही सब प्रार्थना कर रहा हूँ आजकल भगवान से ।

इतना कह के राजीव चुप हो गया। उसकी बात  सुन कर पंडित जी कहने  लगे ..... बेटा जब तुम छोटे थे और बहुत बीमार रहते थे तो तुम्हारी माँ रोज  यहाँ मंदिर आती और तुम्हारी सलामती की दुआ मांगती थी । मुझे याद है उन्होंने मन्नत ली थी कि तुम जल्दी ठीक हो जाओगे तो वे जीवनभर यहाँ मंदिर मे माथा  टेकेगी और उन्होंने पिछले 25 वर्षो से ये किया भी और तुम बस 2 महीनो मे ही थक गए । एक माँ और एक बेटे की मन्नत मे यही फरक होता है बेटा....

पंडितजी की बात सुनकर बेटा निरुत्तर हो गया था     

short story by: Shailendra Rathaur

(यह लघुकथा ई मेल द्वारा प्राप्त | अगर आपके पास भी है कोई ऐसी ही लघुकथा या कहानी तो हमें भेजें nitendraverma@gmail.com पर )                                               




3 comments:

  1. आधुनिक जीवन की वास्तविक सच्चाई...बेहतरीन लघुकथा...शैलेन्द्र जी बहुत बहुत धन्यवाद यह लघुकथा इस ब्लॉग पर शेयर करने के लिये...

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  2. सच हे..इस बदलती जीवन शेली में हम अपनों से ही दूर होते जा रहे हे...
    हमारे माता पिता ने हमें बनाने के लिए जो किया उसका तो शयद हम 1 % भी नहीं कर सकते........

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  3. शेलेन्द्र जी की लघु कथा की तरह हमे भी अपने माता पिता की सेवा करने की प्रेरणा मिलती है मुझे नाज है अपने मित्र पर ....

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