लॉजिक
यात्रियों से लगभग पूरी भरी बस स्टॉप से छूटने ही वाली थी कि दो सज्जन, एक
अधेड़ और एक युवा बस में चढ़े | चढ़ते ही सीट की तलाश में नजरें पूरी बस में दौड़ा दीं
| बमुश्किल एकदम पीछे की तीन सीटर में दो सीटें खाली दिखीं | अधेड़ सज्जन तुरंत सीट
की ओर लपके | पलक झपकते ही सीट पर उनका कब्ज़ा हो चुका था | खिड़की से लगी सीट पर एक
सज्जन पहले से बैठे थे, जो बहुत देर से फोन में लगे थे | बीच में एक बड़ा बैग काबिज
था जो नामालूम किसका था |
युवा भी कुछ देर में अपना व अधेड़ का टिकट कटा कर वहीं आ
गया | शायद दोनों रिश्तेदार थे | अधेड़ युवक को बीच में बैठने का इशारा करते हुए
बैग सीट से हटाने लगा | इससे पहले कि वो बैग हटा पाता और युवक उसमें बैठ पाता, किनारे बैठे अब तक मोबाइल
पर बतिया रहे सज्जन एकदम से भड़क उठे |
फोन पर सामने वाले को होल्ड करने को कहा और अधेड़ की ओर
मुखातिब होकर बोले ‘आपने ये बैग क्यों हटाया ?’ अधेड़ ने कुछ सहम कर जवाब दिया
‘मुझे लगा यहाँ कोई नहीं बैठा है, और ये बैग आपकाsss…’
सज्जन चिल्लाये ‘ये कौन सा लॉजिक है? ये बैग मेरा
हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है | ये सीट खाली हो भी सकती है और नहीं भी हो
सकती | आखिर लॉजिक क्या लगाया आपने, बताइए
मुझे |’ तब तक खड़ा युवक सज्जन को
शांत करने की कोशिश करते हुए बोला ‘कोई बात नहीं सर, अगर कोई बैठा है तो मैं खड़ा
रह जाता हूँ |’ ‘मैंने केवल गेस किया कि बैग आप का ही होगा’ अधेड़ ने जोड़ा |
‘एक मिनट’ युवक को ऊँगली दिखाते हुए वह सज्जन फिर अधेड़
की ओर मुखातिब हो बोले ‘लेकिन कौन से लॉजिक से आप कह सकते हैं ये ये बैग मेरा ही
होगा? किसी और का भी तो हो सकता है | मुझसे पूछे बिना अपने सोच लिया ? वैसे गेस आपका
बिलकुल सही है, बैग मेरा ही है और ये सीट भी खाली है लेकिन बात लॉजिक की किया
करिये |’ बैग हटाते हुए उसने युवक को बैठने का इशारा किया |
अब तक शांत अधेड़ को थोड़ा गुस्सा आ चुका था | गुस्से में
बोला ‘फिर एक लॉजिक तो ये भी है कि आप फोन पर बात कर रहे थे और ऐसे में आपको टोकना
मुझे ठीक नहीं लगा |’ सज्जन फिर गुर्राए ‘देखिये अब आप बेवकूफी वाले लॉजिक मत
दीजिये |’ अधेड़ ने मुंह दूसरी तरफ घुमा लिया | अब उसे चुप रहना ही सबसे सही लॉजिक
लग रहा था |
Short Story by: Nitendra Verma
Date: May 29, 2016 Sunday
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