सफलता की कहानी - 4
विषम परिस्थितियों से जूझना और विजेता बन कर उनसे बाहर निकलना आसान काम नहीं
है | जो ऐसा करते हैं वही होते हैं असली
हीरो | ऐसे लोग बन सकते हैं तमाम लोगों के लिये प्रेरणा स्रोत | इनको कहीं ढूंढने
जाने की जरुरत नहीं होती | ये हमें हमारे आसपास ही मिल जाते हैं...हमारे दोस्त,
गुरु, पड़ोसी या किसी और रूप में | यहाँ पर हम ऐसे ही लोगों की सफलताओं की कहानी
रखेंगे आपके सामने |
इस सीरीज के इस अंक में प्रस्तुत है कहानी एक ऐसे ही विजेता शैलेन्द्र राठौर
की | बचपन में ही पोलियो हो जाने के चलते अपने दोंनो पैर गँवा देने वाला यह शख्स तमाम
मुश्किलों को पार कर विजेता बन कर बाहर निकला | तो चलिए जानते हैं उनकी सफलता की
कहानी उनकी अपनी कलम से...
शैलेन्द्र राठौर
B.A.,
M.A.(Eco),
PGDCA
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प्रेरणा स्रोत
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माता जी, बड़े भाई
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हॉबी
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कविता लिखना, फ़िल्में देखना, क्रिकेट देखना
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पसंदीदा किताब
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यू कैन विन (शिव खेड़ा)
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नमस्कार मेरा नाम शैलेन्द्र राठौर है |
वर्तमान में मैं इलाहाबाद बैंक में कार्यरत हूँ | लेकिन मेरे लिये ये नौकरी हासिल
करना आसान काम नहीं था |
मेरा जन्म
एक बड़े संयुक्त निम्न मध्यवर्गीय परिवार में हुआ | पिताजी शिक्षक थे | चार भाई
बहनों में मैं सबसे छोटा था | जब मैं दो साल का ही था मेरे दोनों पैरों में पोलियो
हो गया | पिताजी ने तमाम डॉक्टरों को दिखाया | नीम हकीम हर जगह हर दरवाजे गये
लेकिन इस बीमारी का कोई इलाज न था | सब लोग बहुत परेशान थे |
इसी बीच कुछ
ऐसा हुआ जिसने हम लोगों को अन्दर से तोड़ कर रख दिया | पिताजी की दोनों किडनियां
ख़राब हो गयी थीं | उस समय मैं चार साल का था | मेरा इलाज बीच में छोड़ सब पिताजी के
इलाज में जुट गये | आखिर चार साल तक चली जिन्दगी और मौत की जद्दोजहद में जिंदगी
हार गयी | परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा |
अब हम चार
बच्चों को पालने पोसने की जिम्मेदारी माँ के कन्धों पर थी | मेरे सबसे बड़े भाई उस
वक्त मात्र तेरह साल के थे इसलिये वो भी माँ की कोई मदद कर पाने लायक नहीं थे | घर
की आर्थिक स्थितियां बेहद ख़राब थी | ऐसे में मेरे इलाज की कल्पना भी मुश्किल थी |
घर की
आर्थिक दुर्दशा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उस समय हमारे पास इतने पैसे
भी नहीं थे कि मेरे लिये एक अदद ट्राइसिकिल खरीदी जा सके | इस कारण मैं कक्षा
पांचवीं तक पढ़ने के लिये कभी स्कूल नहीं गया |
स्कूल जाता था लेकिन सिर्फ परीक्षा
देने |
पांचवीं पास
हो जाने के बाद एक परिचित ने मुझे रेडक्रॉस की तरफ से एक ट्राइसिकिल दिलवाई | इसके
बाद मैं छठी कक्षा से नियमित स्कूल जा सका | लेकिन मुश्किलें और हालात अभी मेरी और
परीक्षा लेना चाह रहे थे | मैंने 12 वीं की परीक्षा अच्छे अंकों से उत्तीर्ण कर ली
| लेकिन मेरे गाँव में कक्षा 12 तक की ही शिक्षा व्यवस्था थी | डिग्री कॉलेज मेरे
गाँव से करीब 15 किमी दूर था | जहाँ ट्राइसिकिल से आना जाना मुमकिन नहीं था | आखिरकार मेरी पढ़ाई छूट
गयी |
घर में माँ
लाख की चूड़ियाँ बनाती थीं | मैंने भी इस काम में उनका हाथ बटाना शुरू कर दिया | हम
लोग चूड़ियाँ बनाते और उन्हें बेचते थे | लेकिन मेरे मन में तो कुछ और ही सपने थे |
पढ़ाई पूरी करने का मन था | मेरे बड़े भाई ने मेरा हौसला बढ़ाया जिसके चलते मैंने फिर
से अपनी पढ़ाई शुरु कर दी | बी.ए. का प्राइवेट फॉर्म भरा और अच्छे अंकों से पास हुआ
| इसके बाद मैंने एम. ए. (इकोनोमिक्स) भी पूरा किया | जानता था कि आजकल अच्छी
नौकरी के लिये कंप्यूटर बहुत जरुरी है | इसलिये कंप्यूटर में पोस्ट ग्रेजुएट किया
|
इतनी पढ़ाई
कर लेने के बाद अब बारी थी नौकरी पाने की जद्दोजहद की | मैंने घर पर ही रहकर
प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी | बहुत तैयारी के बावजूद मेरा कहीं भी
चयन नहीं हो पा रहा था | मेरी हिम्मत जवाब देने लगी थी | आत्मविश्वास डिगने लगा था
| ऐसे में एक बार फिर बड़े भाई ने मुझे संभाला | उन्होंने मुझे तीन पहिये का स्कूटर
लाकर दिया ताकि मैं घर से 15 किमी दूर एक कोचिंग सेंटर पर जाकर प्रतियोगी
परीक्षाओं की तैयारी कर सकूं |
अपने घर से
रतलाम(M.P.) रोज 30 किमी आना जाना
होता था | मैंने खूब जी भर कर मेहनत की | आखिरकार वह दिन आ ही गया जब मुझे मेरे
संघर्ष का फल मिला | इलाहाबाद बैंक में मेरा चयन एस.डब्लू.ओ. के पद पर हो गया था |
चयन की खबर मिलते ही मेरी ऑंखें आंसुओं से भर गयीं | तमाम मुश्किलों, झंझावतों, कठिनाईयों
को झेलते हुए सफलता प्राप्त कर लेने का सुख ही अलग है | मैंने ऊपर वाले को, अपने
परिजनों को धन्यवाद दिया | यदि वो मुश्किल वक्त में साथ न होते तो ये सफलता संभव न
थी |
आज बैंक में
कार्य करते हुए मुझे बेहद सुकून और ख़ुशी महसूस होती है | कहानी, कविता और ग़जल
लिखने का मुझे बहुत शौक है | मुझे पूरा विश्वास है कि एक दिन लेखन के क्षेत्र में
भी ऊँचा मुकाम जरुर हासिल करूँगा जिसके मैं सपने देखता हूँ |
धन्यवाद।
शैलेन्द्र राठौर
S.W.O., Allahabad Bank
B.A., M.A. (Economics), PGDCA
B.A., M.A. (Economics), PGDCA
(यह ‘Success Story’ e-mail द्वारा प्राप्त | यदि आपके पास भी है कोई ऐसी ही Success Story तो हमें भेज दें mail id: nitendraverma@gmail.com पर)
शैलेन्द्र राठौर जी आपके जज्बे,हिम्मत और मेहनत को मेरा सलाम | आप जैसी हिम्मत बिरले ही दिखा पाते हैं | काबिले तारीफ ...
ReplyDeleteWahh ustad wahh....itni gehrai se to aaj pehili baar jana aapko
ReplyDeleteWahh ustad wahh....itni gehrai se to aaj pehili baar jana aapko
ReplyDeleteअगर आप में कुछ कर गुजरने का जज्बा है तो बडी से बडी मुश्किलों से आप पार पा सकते हैं।
ReplyDeleteइसी से आपने हिम्मत और मेहनत से ये मकान पाया है