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Saturday, February 27, 2016

"लघुकथा"- शिक्षा

शिक्षा


बस की पिछली सीट के कोने में बैठे तंदुरुस्त कद काठी वाले युवक की मोबाइल पर चल रही बातें पूरी बस में गूँज रही थीं | थोड़ी देर में उसके चिल्लाने की आवाजें आने लगीं | ‘बुड्ढे बस में बीड़ी पीना बंद कर | बस में बच्चे हैं, महिलाएं हैं, बीमार हैं | अरे कोई जगह तो छोड़ दो | पूरी बस में धुआं भर दिया है |’ गुस्सा निकाल लेने के बाद वो फिर फोन पर बातों में मशगूल हो गया |

पूरी रफ़्तार से रात के अँधेरे में चली जा रही बस में अचानक से ब्रेक लगे | बस रुकवाने वाली सवारी जैसे ही बस में चढ़ी, फोन पर लगा वही युवक चिल्लाया – ‘भाई यार गलती हो गयी | मैं देख नहीं पाया | भगवान कसम देखा होता तो ऐसी गलती नहीं करता |’ कंडक्टर के पास खड़े हुए उस सवारी ने तेज स्वर में कहा ‘पान मसाला खाने का इतना ही शौक है तो एक पीकदान साथ में लेकर चला करो | कैसे- कैसे लोग हैं |’ इतना कहकर वह लाल रंग से रंग गयी अपनी जैकेट की बांह को रूमाल से साफ़ करने की कोशिश करने लगा |


Short Story by: Nitendra Verma
                                                                              Date: Jan 04, 2016 Monday



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