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Thursday, October 1, 2015

"ख़याली पुलाव"- खिड़की का कोना

खिड़की का कोना


नये घर में आये मुझे कुछ ही दिन हुये थे | एक दिन सुबह सुबह मेरी नजर बाहर वाली खिड़की पर पड़ी तो देखा कि खिड़की के ऊपरी हिस्से पर चिड़ियों ने कुछ घास-फूस इकट्ठा कर रखी है | मैं समझ गया कि ये चिड़िया यहीं घोंसला बनाने की तैयारी में हैं | चिड़ियाँ दिन भर चक्कर लगातीं , बाहर से अपनी चोंच में तिनके दबा कर लाती, उन्हें करीने से खिड़की पर रख वापस फुर्र हो जातीं | कड़ी मशक्कत से उन चिड़ियों ने आठ दस दिनों में ही अपना घोंसला तैयार कर लिया |
एक दिन मुझे न जाने क्या सूझी | डंडा लेकर कुर्सी के ऊपर चढ़ गया और उस घोंसले को उजाड़ने लगा | अचानक मेरे हाथ रुक गये | मैंने देखा उस घोंसले में घास, फूस और न जाने किस किस चीज के छोटे छोटे तिनके थे | तिनका - तिनका जोड़ने में उन चिड़ियों ने कितनी मेहनत की होगी | मैं मूर्ख उसे उजाड़ने चला था – मन आत्मग्लानी से भर उठा | आखिर इन चिड़ियों ने मेरा बिगाड़ा ही क्या है, खिड़की का सिर्फ एक कोना ही तो मांग रहीं हैं | उस दिन से मैं उस घोंसले का ज्यादा ध्यान रखने लगा | सुबह उठते ही सबसे पहले नजर उसी पर जाती | बिल्ली का डर था इसलिए बाहरी दरवाजे अक्सर बंद रखता था |
घोंसला पूरी तरह बन जाने के बाद चिड़ियों के जोड़े ने उसमें रहना भी शुरू कर दिया | तड़के से ही उनका चहचहाना जो शुरू होता था वो देर रात तक जारी रहता था | फुर्र फुर्र करके घर भर में फुदकती रहती थीं | घर का सदस्य बन गया था ये जोड़ा | अक्सर मैं सुबह - सुबह फ़र्श पर चावल बिखरा देता था जिसे दोनों फुदक फुदक कर खा जाते थे | दोनों सुबह ही घोंसला छोड़ कर बाहर उड़ जाते थे और शाम ढलने तक वापस आ जाते थे गोया कोई ऑफिस जाते हों | चाहे इन्सान हों या पशु – पक्षी रोटी का जुगाड़ तो सब को करना ही पड़ता है |
कुछ दिनों बाद मेरी पत्नी को जरूरी काम से मायके जाना पड़ गया | मैं घर में अकेला रह गया | उन दिनों मुझे ये चिड़िया सुबह जगाने का काम करती थीं | इनकी चहचहाहट से नींद खुल जाया करती थी | एक दिन सुबह ही मुझे लगा जैसे आज इस चहचहाहट में कुछ नये स्वर भी हैं | मैं घोंसले के पास गया झांक कर देखा तो चिड़ियों के दो छोटे छोटे बच्चे चोंच खोले सुर में सुर मिला रहे थे | मुझे ये देख कर बड़ा आनंद और संतुष्टि मिली | मन में सवाल उठा कि अगर उस दिन मैंने ये घोंसला उखाड़ फेंका होता तो ? चिड़िया इस कदर चिल्ला रही थीं जैसे पूरी दुनिया को बता देना चाहती हों कि उनके घर दो नये सदस्य आ गये हैं | उनका कोलाहल कई दिनों तक ऐसे ही जारी रहा | अब दोनों चिड़िया बाहर तो निकलती थीं लेकिन बहुत जल्दी जल्दी वापिस भी आ जाती थीं | जैसे देख रही हों कि उनके बच्चे सुरक्षित हैं या नहीं | बाहर से चोंच  में दाना दबाकर लाती थीं और  चूजे के चोंच में डाल देती थी | उनका हँसता खेलता परिवार देखकर बड़ा अच्छा लगता था |
कुछ दिनों बाद मुझे जरूरी काम से दो एक दिन के लिये बाहर जाना पड़ा | जब वापस सपरिवार लौटा तो नजर पहले ही खिड़की के उस कोने पर गई जहाँ घोंसला था | आज चिड़ियों की चहचहाहट गायब थी | कोई शोर नहीं,  अजीब सा सन्नाटा था | मुझे लगा चिड़िया ये घोंसला छोड़ गयी हैं | मन कुछ उदास हो गया |  उनका दिन भर शोर मचाना मुझे सुरों से सजा संगीत लगता था | उनकी फैलाई घास फूस साफ़ करने में मजा आता था | चावल बिखेरते ही चिड़ियों का उन्हें खाने में लग जाना सुकून देता था | थोड़ी देर यादों में डूबे रहने के बाद मैं फिर घोंसले के पास गया | तभी मेरी नजर चिड़िया के पंख पर पड़ी | घोंसले के एक कोने में चिड़िया का पंख दिख रहा था | मेरी आँखों में चमक आ गयी | मैंने तुरंत कुर्सी लगायी और घोंसले में झाँका | आह ! ये क्या ? घोंसले के कोने में नन्ही  चिड़िया फंसी हुई थी | मर चुकी थी वो | पंख फैले थे शरीर सूख चूका था | शायद उसे मरे हुए दो तीन दिन हो गये थे | लेकिन दूसरा बच्चा और इसके अभिभावक कहाँ गये | उसे मरा देख कर मुझे बहुत अफ़सोस हुआ | लेकिन इससे ज्यादा हैरानी इस बात की थी कि इसका परिवार इसे इस हाल में छोड़कर चला गया |
मालूम नहीं वो बच्चा कैसे मरा | बिल्ली ने अपना शिकार बना लिया या फिर घोंसले में पंख फंसने से मर गई, जैसा हालात बयां कर रहे थे | मैं उस मरी चिड़िया को उसी समय हटाने जा रहा था लेकिन मेरी पत्नी ने मुझे रोका | वो बोलीं हो सकता है कि इसके माँ बाप इसे लेने वापस आयें | मुझे बात सही लगी | तीन दिन बीत गये लेकिन वो चिड़िया झाँकने तक नहीं आयीं | मुझे उन चिड़ियों पर बहुत गुस्सा आया | जो अपने बच्चों के लिये जी तोड़ मेहनत करती हैं वो इतनी बेदर्द हो जाएँ ये कैसे मुमकिन है | मैंने मरी चिड़िया को वहां से हटाया और गुस्से में पूरा घोंसला उजाड़ दिया | दो तीन हफ्ते बाद दो चिड़िया फिर आयीं और खिड़की के उसी कोने पर चोंच मारने लगीं शायद अपने बच्चे को वापस लेने आयीं थीं या फिर से एक और घोंसला बनाने की तैयारी थी...
   
                        
                                     Khayali Pulao By : Nitendra Verma                                                                    Date: Sept 22, 2015 Tuesday

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