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Friday, November 21, 2014

"ख़याली पुलाव" - स्व अनुशासन – कल्पना या हकीकत

स्व अनुशासन – कल्पना या हकीकत

स्व अनुशासन ...कितना अच्छा लगता है ये शब्द पढ़ने और सुनने में | लेकिन क्या हकीकत में इसका कोई अस्तित्व है या ये मात्र एक कल्पना है | स्व अनुशासन यानी बिना किसी बाहरी कारक के स्वयं अनुशासित रहना | जब भी कभी समाज सुधार की बातें होती हैं तब ये शब्द अक्सर सुनाई पड़ता है | लेकिन शायद ही हम में से कोई स्व अनुशासित रहता हो | हो सकता है किसी डर, लालच, या अन्य वजह से हम कभी कभी अनुशासित रहते हों लेकिन इसे स्व अनुशासन कतई नहीं कहा जा सकता |
शायद बिना भय के अनुशासन की उम्मीद करना बेमानी ही है | जहाँ भी अनुशासन मिलेगा वहां कोई भय जरूर होता है | यदि हम नीचे दिए कुछ केसों पर गौर फरमाएं तो बात कुछ हद तक समझ में आ जाएगी .....

केस 1 : वाहन चालकों का हेलमेट/सीट बेल्ट न लगाना  
अलग अलग शहरों में हेलमेट का प्रयोग अलग मिलेगा | कानपुर जैसे शहर में बहुत कम प्रतिशत दोपहिया वाहन चालक हेलमेट लगाये मिलेंगे | जो लगाये मिलेंगे भी उनमें ज्यादातर वो लोग होंगे जिन्हें पुलिस चेकिंग का डर है | वहीँ लखनऊ में आपको लगभग हर चालक हेलमेट लगाये मिलेगा | हालाँकि इसी शहर में सुबह 9 बजे के पहले नजारा अलग दिखेगा | इक्का दुक्का चालक ही हेलमेट लगाये दिखेगा | वजह-  चेकिंग इतनी सुबह शुरू नहीं होती | अब चलें दिल्ली | यहाँ पर हालात और भी अलग हैं | यहाँ पर केवल दोपहिया चालक ही नहीं बल्कि पीछे बैठा व्यक्ति भी हेलमेट लगाये मिलेगा | कारण – वहां दोनों के लिए हेलमेट अनिवार्य है |
यही हाल चार पहिया वाहन चालकों का है | दिल्ली में ये चालक सीट बेल्ट लगाये ही दिखेंगे लेकिन बाकी जगहों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता | एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में होने वाले सड़क हादसों में होने वाली मौतों का एक बड़ा कारण है हेलमेट / सीट बेल्ट का प्रयोग न करना |    
आखिर हेलमेट जैसी चीज के लिये अलग अलग नजारा क्यूँ ? तमाम लोग तो पुलिस चेकिंग से बचने के लिए घटिया हेलमेट इस्तेमाल करते हैं | पता नहीं हम किसे बेवकूफ़ बना रहे हैं | हेलमेट तो हमारी अपनी सुरक्षा के लिए है फिर इसके लिए कानून को डर दिखाने की क्या जरुरत |

केस 2 : सार्वजनिक स्थानों पर गन्दगी फैलाना
हिंदुस्तान के लगभग हर रेलवे स्टेशन पर गन्दगी फैलाना हम अपना परम कर्तव्य समझते हैं लेकिन  मेट्रो स्टेशन पर गन्दगी फैलाना तो दूर थूकते भी नहीं | कितना अजीब है कि एक तरफ तो हैं गन्दगी से अटे पड़े सामान्य स्टेशन और दूसरी तरफ चमचमाते मेट्रो स्टेशन | दोनों ही अपने हिंदुस्तान में हैं और दोनों का प्रयोग हम हिन्दुस्तानी ही करते हैं फिर भी जमीन आसमान का फर्क | कारण – मेट्रो स्टेशन पर किसी भी प्रकार की गन्दगी फ़ैलाने पर तुरंत जुर्माना भरना पड़ जाता है जबकि सामान्य स्टेशन तो मानो बने ही गन्दगी फ़ैलाने के लिए हैं |  

केस 3 : रेलवे फाटक पार करना
बंद रेलवे फाटक पे रुकना हम भारतीय अपनी शान के खिलाफ़ समझते हैं | येन केन प्रकारेण हमें फाटक पार करना है | मानो चली आ रही ट्रेन से ज्यादा ख़तरा हमें इस फाटक से हो | फाटक के नीचे से वाहन चालक वाहन निकालते हुए ऐसी ऐसी मुद्राएँ बनाते हैं कि ताज्जुब होता है कि हम आज तक ओलंपिक एथलेटिक्स में एक भी पदक क्यूँ नहीं जीत पाए | भले ही सामने से ट्रेन दनदनाती चली आ रही हो लेकिन हम स्टंट दिखाने से बाज नहीं आते | कई तो मोबाइल या इयर फोन लगाये ही बिना दायें बाएं देखे ही फाटक पार कर जाते हैं ऐसा लगता है कि इन लोगों को ट्रेन का ध्यान रखने की नहीं बल्कि ट्रेन को इनका ध्यान रखने की जरुरत है |

केस 4 : कक्षा में अनुशासन हीनता
छात्र चाहे नर्सरी का हो या इन्जीनियरिंग का अनुशासन के मामले में सब एक से होते हैं | यदि शिक्षक काबिल न हो तो कक्षा कक्षा नहीं सब्जी मंडी लगेगी | ज्यादातर छात्र अनुशासन हीन ही होते हैं और जो अनुशासित होते हैं वो या तो डर की वजह से होते हैं या फिर दूसरों को दिखाने भर के लिए होते हैं | कक्षा में तो हम भविष्य बनाने के लिये जाते है फिर वहां अनुशासन हीनता क्यूँ ? इसके लिए भी किसी का डर होना जरुरी है ?

ऐसे तमाम उदहारण हैं जो इस बात को पुख्ता करते हैं कि जहाँ जहाँ पर कानून /नियम सख्त हैं वहां पर अनुशासन है | इसके बिना अनुशासन की कल्पना करना कदाचित ठीक नहीं होगा | स्व अनुशासन तो किताबी शब्द ही ज्यादा लगता है | हकीकत से दूर एक सुन्दर कल्पना |

Khayali Pulao By : Nitendra Verma                                                     Date: November 21, 2014 Friday



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