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Sunday, July 20, 2014

ख़याली पुलाव - रोटी का जुगाड़

रोटी का जुगाड़
ये रोटी भी बड़ी अजीब चीज है | जिंदगी में हम सब कुछ इसी के लिए तो करते हैं | पैदा होने से लेकर मरने तक हम इसी की जद्दोजहद में लगे रहते हैं | रोटी हमें हमारे घर से दूर कर देती है | हमारे परिवार से दूर कर देती है | हमारे दिन का चैन रात की नींद लूट लेने वाली भी तो रोटी ही है | हमारा घर परिवार कहीं और होता है और हम कहीं और रोटी का जुगाड़ कर रहे होते हैं | चाहे गरीब हो या अमीर हालात दोनों के एक ही जैसे हैं | अगर गरीब को रात की रोटी की चिंता होती है तो अमीर भविष्य की रोटी का इंतजाम करने में लगा रहता है | रोटी के लिए लोग परदेस तक चले जाते हैं | शायद वहां की रोटियों का स्वाद यहाँ से कुछ अलग और अच्छा होगा | इसी चक्कर में कुछ लोग गलत रास्ते भी अख्तियार कर लेते हैं | कुछ अपने हालात से मजबूर होकर ऐसा करते हैं तो कुछ दूसरों की इसी मजबूरी का फायदा उठाने के लिए ऐसा करते हैं |
      कुछ लोग कई पीढ़ियों तक के लिए रोटियों का इंतजाम कर लेना चाहते हैं इसीलिए तमाम घोटाले तक कर डालते हैं | इस रोटी के ही चलते हम समाज से कट से जाते हैं | हम अपने आस पड़ोस के लोगों को भी नही पहचानते | जानते हैं तो मिलने का समय नहीं निकाल पाते | रिश्तेदारी के किसी कार्यक्रम में जाना तो दूर कभी कभी तो खुद के घर में काम होते हुए भी हम नहीं पहुच पाते | ओफ्फ़ कितनी कोफ़्त होती है सोच कर ही | कभी कभी लगता है कि अगर बिना भोजन के भी चल सकता तो कैसा होता हमारा जीवन | फिर तो किसी चीज की चिंता ही न होती | जब चिंता न होती तो बीमारियाँ भी न होती | न पढ़ाई का झंझट न नौकरी की खट पट | हरदम अपने घर परिवार के पास होते | समय की कोई कमी नही | चौबीस घंटे बस अपने | न कोई रोक टोक | जब जहाँ मन हो जाइये जिससे मन हो मिलिए | सुबह देर तक सोइए और रात में देर तक जगिये | सारे कष्टों से मुक्ति | कितना आसान हो जाता ये जीवन | एकदम बेफिक्र बिलकुल बेपरवाह |

      लेकिन क्या वाकई ऐसा होगा | जरा याद कीजिये अपने स्कूल के दिनों को | स्कूल के दिनों में अक्सर हमें लगता था कि खूब सारी छुट्टियाँ हो जाएँ तो मजा आ जाये | गर्मियों में ये मौका आता भी था जब पूरे दो महीने की छुट्टियाँ हुआ करती थीं | बहुत मजा आता था लेकिन सिर्फ कुछ दिन | फिर तो लगने लगता था कि कितनी जल्दी ये छुट्टियाँ ख़त्म हो जायें और फिर से स्कूल वाले दिन लौट आयें | यही बात हमारे जीवन में भी लागू होती है | जब तक रोटी कमाने की जद्दोजहद है जीवन का मजा भी तब तक ही है | जिस दिन हमने ये कोशिश छोड़ दी जिंदगी बेमज़ा बेमतलब हो जाएगी | आखिर यही तो है जिंदगी | चाहे पशु, पंछी हो या हम सबकी जिन्दगी एक सी है | सबकी जिन्दगी का एक ही मकसद है-  आज और भविष्य के लिए रोटी का जुगाड़ | इन सब बातों का लब्बोलुआब ये है कि हमें सब शिकवे शिकायतों को छोड़कर रोटी के जुगाड़ में लगे रहना है | क्योंकि जिंदगी का असली रस और मजा इसी में तो है |                                                                 

                     Khayali Pulao By : Nitendra Verma                                                                                                       Date: July 19, 2014 Saturday

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